हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और ट्रंप सरकार के बीच बढ़ता टकराव

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ट्रंप 2.0 प्रशासन और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर रोक, फंडिंग कटौती और टैक्स नियमों ने शिक्षा की स्वतंत्रता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जानें पूरी कहानी।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और ट्रंप 2.0 प्रशासन के बीच चल रहा टकराव अब एक गंभीर संकट में बदल गया है। 22 मई को अमेरिकी होमलैंड सिक्योरिटी विभाग (DHS) ने घोषणा की कि हार्वर्ड अब अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला नहीं दे पाएगा। इसके खिलाफ हार्वर्ड ने ट्रंप प्रशासन पर मुकदमा दायर किया और इस फैसले को संविधानिक अधिकारों का “स्पष्ट उल्लंघन” बताया। फिलहाल एक संघीय न्यायाधीश ने सरकार के फैसले पर अस्थायी रोक लगा दी है।

पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से अमेरिका की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटियों को निशाना बनाते रहे हैं। उनका मानना है कि ये संस्थान अमेरिकी मूल्यों के खिलाफ विचारधाराओं को बढ़ावा देते हैं। 2024 के चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने वादा किया था कि बड़ी प्राइवेट यूनिवर्सिटियों की बड़ी एंडोमेंट राशि (निधि) पर टैक्स और जुर्मानों के ज़रिए लगाम लगाएंगे।

2021 में उपराष्ट्रपति जे.डी. वांस ने विश्वविद्यालयों को “दुश्मन” तक कह दिया था। ऐसे में यह आश्चर्यजनक नहीं कि अब ट्रंप प्रशासन उच्च शिक्षा पर सीधा नियंत्रण चाहता है।


संकट कैसे बढ़ा?

मार्च के मध्य में ट्रंप प्रशासन ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से 400 मिलियन डॉलर की फेडरल फंडिंग वापस ले ली और कई शर्तें पूरी करने पर ही फंड लौटाने की बात कही। कोलंबिया दबाव में झुक गई, जिससे सरकार को एक बड़ी जीत मिली। लेकिन ट्रंप के लिए असली जीत हार्वर्ड को झुकाना था—जो अमेरिका की सबसे पुरानी और अमीर यूनिवर्सिटी मानी जाती है।

हार्वर्ड का झुकना जरूरी था क्योंकि ट्रंप समर्थकों की नज़र में यह संस्थान उदारवाद का गढ़ है, जो DEI (Diversity, Equity, Inclusion) जैसे विचारों का समर्थन करता है और पारंपरिक मूल्यों का विरोध करता है।


सरकार की मांगें और हार्वर्ड का इनकार

अप्रैल में ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड के सामने कुछ सख्त मांगें रखीं:

  • फैकल्टी और छात्रों के प्रभाव को सीमित किया जाए

  • अंतरराष्ट्रीय छात्रों के आचरण की रिपोर्ट सरकार को दी जाए

  • हर विभाग में विचारों की विविधता सुनिश्चित करने के लिए बाहरी निरीक्षण हो

हार्वर्ड के अध्यक्ष एलन गार्बर ने कहा कि इन मांगों को मानने का मतलब होगा सरकार को यूनिवर्सिटी पर नियंत्रण देना और उसके बुनियादी मूल्यों को खतरे में डालना।

हार्वर्ड, जिसकी एंडोमेंट राशि $52 बिलियन है, ने कोलंबिया की तरह झुकने से इनकार कर दिया। जब सरकार ने 2.26 बिलियन डॉलर की ग्रांट रोक दी, तो हार्वर्ड ने मुकदमा दायर किया।


आर्थिक दबाव और टैक्स की धमकी

5 मई को शिक्षा सचिव लिंडा मैकमोहन ने लिखा कि हार्वर्ड अब तब तक कोई नई फंडिंग नहीं पाएगा जब तक वह “जिम्मेदार प्रबंधन” साबित नहीं करता। इसके बाद हार्वर्ड को 8 सरकारी एजेंसियों से $450 मिलियन की ग्रांट का नुकसान हुआ।

ट्रंप प्रशासन अब हार्वर्ड की टैक्स-फ्री स्थिति खत्म करने पर भी विचार कर रहा है। एक नया कानून पास हुआ है, जिसमें प्राइवेट यूनिवर्सिटियों की निवेश आय पर टैक्स बढ़ाया गया है। इसका सीधा असर हार्वर्ड की फंडिंग और दानदाताओं पर पड़ेगा।


अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर असर

22 मई को DHS ने कहा कि हार्वर्ड का नेतृत्व “अमेरिका-विरोधी और आतंक समर्थक लोगों” को बढ़ावा दे रहा है, जिनमें कई अंतरराष्ट्रीय छात्र शामिल हैं। हार्वर्ड के अनुसार, इस फैसले से उसके 6,800 अंतरराष्ट्रीय छात्रों (जो कुल संख्या का 27% हैं) की पढ़ाई और वीजा पर असर पड़ेगा।


क्या होगा आगे?

हालांकि अमेरिका अपने विश्वविद्यालयों को नुकसान पहुंचा रहा है, लेकिन वीजा और दाखिले का पूरा नियंत्रण उसके पास है। अमेरिकी यूनिवर्सिटियों को अंतरराष्ट्रीय छात्रों को पढ़ाने के लिए DHS के Student and Exchange Visitor Program में पंजीकृत होना जरूरी है। अगर सरकार चाहे, तो हार्वर्ड का इंटरनेशनल एडमिशन रोका जा सकता है।


निष्कर्ष

हार्वर्ड बनाम ट्रंप प्रशासन की यह लड़ाई अब एक ऐतिहासिक अध्याय बनती जा रही है, जो भविष्य में “शैक्षणिक स्वतंत्रता” पर बहस की दिशा तय कर सकती है। इस टकराव ने हार्वर्ड को सरकार के खिलाफ एक नायक बना दिया है। चाहे हार्वर्ड (डेविड) यह लड़ाई जीते या ट्रंप (गोलियत), यह टकराव इस बात की मिसाल बनेगा कि सरकार और शिक्षा संस्थानों के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए।

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